तिलोपा का उद्धरण इस बात पर जोर देता है कि हमारा सच्चा उलझाव बाहरी परिस्थितियों से नहीं बल्कि हमारे आंतरिक संलग्नकों और इच्छाओं से आता है। यह एक अनुस्मारक है कि हम जिन चुनौतियों का सामना करते हैं, वे अक्सर स्वयं स्थितियों के बजाय हमारी अपनी मानसिकता और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का एक उत्पाद हैं। यह परिप्रेक्ष्य आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करता है, यह सुझाव देते हुए कि हमारे आंतरिक क्लिंगिंग को संबोधित करके, हम अधिक स्पष्टता और स्वतंत्रता पा सकते हैं।
लामा सूर्य दास, अपनी पुस्तक "जागृति द बुद्धा के भीतर" में, पश्चिमी विचार के साथ तिब्बती ज्ञान को सम्मिश्रण करके इन विषयों की पड़ताल करते हैं। वह आत्म-जागरूकता और माइंडफुलनेस की वकालत करता है, जिससे पाठकों को यह समझने की अनुमति मिलती है कि कैसे संलग्नक को जाने देने से अधिक मुक्त और शांतिपूर्ण अस्तित्व हो सकता है। इस समझ के माध्यम से, हम अधिक आसानी से जीवन की कठिनाइयों को नेविगेट करना सीख सकते हैं।