नागुइब महफूज़ की पुस्तक "कश्तमार" मृत्यु दर की अवधारणा और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के लिए इसके संबंधों की पड़ताल करती है। कथा बताती है कि मृत्यु व्यक्तियों और उनके उद्देश्यों के बीच एक दुर्गम बाधा के रूप में कार्य कर सकती है। जब मृत्यु की अनिवार्यता का सामना करना पड़ता है, तो पात्रों को कठोर सत्य का सामना करना चाहिए कि उनकी महत्वाकांक्षाएं अंततः अप्राप्य हो सकती हैं। यह उनके जीवन में तात्कालिकता और प्रतिबिंब की भावना पैदा करता है, क्योंकि वे अस्तित्व की प्रकृति से जूझते हैं।
मार्मिक उद्धरण इस बात पर जोर देता है कि जीवन की क्षणिक प्रकृति सपने और इच्छाओं को कैसे बाधित कर सकती है। यह जीवन और मृत्यु के बीच नाजुक सीमा की याद के रूप में कार्य करता है, यह उजागर करते हुए कि लोग अपने लक्ष्यों की ओर प्रयास करते हैं, उन्हें एक साथ उनकी मृत्यु दर की याद दिलाई जाती है। इस संदर्भ में, Mahfouz जीवन के समापन बिंदु की अनिश्चितता के बीच एक पल में रहने के दार्शनिक निहितार्थों और किसी के पीछा करने के महत्व को स्पष्ट करता है।